कभी किसी की खामोशी चुराते है
कभी खुद को छुपाते है
मायुस है हर खुशी
और हम दिल को बहलाने के लिए
जाने क्या क्या कर जाते है
नीँदे चुराते है,सपने सँजाते है
वादे निभाते है,खुद ही भुल जाते है
वक्त की यह दास्ता
हम खुद को सुनाते है
क्योँ हर घङी हम खुद को
हजारोँ के बीच भी तनहा पाते है
सच्चाई को छुपाने की कोशिशे की जाती है
जो अपना नहीँ,अपना बनाने की कोशिशे की जाती है
सहम उठते है,सिसक उठती है धङकने
और हमारे सपने,ख्वाहिशे ही रह जाती है
बीते हुए लमहोँ ने हमेँ
जाने क्या क्या सिखा दिया
दूर थे जिससे आजतक हम
उन्हे ही आज
हमने अपना बना लिया
ठाकुर दीपक सिँह 'कवि'
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