Thursday, February 10, 2011

शायरी-ठाकुर दीपक सिँह कवि

1.रौशन है जिन्दगी फिर भी तन्हाई नजर आती है
चमकते हुए चाँद मेँ भी परछाई नजर आती है

2.सपने सजानेँ भर से ही
मंजिल नहीँ मिल पाती
हम उन्हेँ जोङते है
चाहे जितनी मुश्किलेँ आती
खामोश रहकर भी हम
कितना कुछ कहते है
क्या तुम
कभी पढ पाये
सपनेँ तो हमने तुम्हारे सजा दिये
पर तुमने मेरे सपने कभी सँजाये?
-ठाकुर दीपक सिँह कवि

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