Sunday, March 27, 2011

" मकसद "- ठाकुर दीपक सिँह कवि

दुनिया मेँ कुछ जीत सकते हो तो किसी का दिल जीतो...किसी का विश्वास जीतो....प्रेम से सुखद अनुभव इस दुनिया मेँ कुछ नहीँ है....
धर्म विशेष से घ्रिणा करने के बजाय बुरे कर्म करने वाले इँसा को सद्बुद्दि दो...
उसे सही रास्ते पर लाने की कोशिश करेँ...यही हमारा वास्तविक धर्म है...
मुझे हिन्दू होने का अपार गर्व है परन्तु किसी के मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई होने से कोई आपत्ति भी नहीँ है....
ईश्वर ने हमेँ धरती पर जन्म दिया है तो उस सर्वशक्ति मान का एक मात्र उद्देश्य प्रेम का प्रसार करना है...
उसने हमेँ इंसान बनाया है तो उसका एकमात्र उद्देश्य एकता बनाये रखना हैँ...जानवर बनना नहीँ...
अगर हम एक दूजे से द्वेष एवं क्लेश की भावना से ग्रष्त रहेँगे तो भला इस दुनिया मेँ हमेँ मानव कहलाने का क्या अधिकार है?
जीवन को जीने का हमेँ ज़रिया बनना चाहिए...ना कि बोझ...
वर्तमान मे जीने का एकमात्र मकसद प्रेम की अनुभुति एवं प्रेम का अनुशरण होना चाहिए...
धार्मिक क्लेश फैलाने वालोँ का भी एक विशेष मकसद हैँ...उन्हेँ सत्ता,सुख,एवं शक्ति की भूख हैँ....
वो आते है हमेँ भड़काते है लड़ाते है और खुद किनारा कर लेते हैँ....
और उनसे बड़े मूर्ख तो हम है जो बिना किसी बुनियाद के एक दूजे से लड़ते रहते हैँ...
अपने जीवन का मकसद समझो दोस्तोँ!!!प्यार दो और प्यार लो....अपनी ज़िन्दगी अपने ढ़ंग से जियो....ना कि किसी के बताये हुए तरीके से....
अपने जीवन के मकसद को पहचानोँ और आओँ मिलकर एक शिक्षित,सुखी,स्वस्थ्य,सम्पन्न,प्रेमपूर्ण समाज एक सम्राट एवँ गौरवशील हिन्दुस्तान का निर्माण करेँ.........

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