" आएँ रंगोँ से खुद को रंग दें " लेखक - ठाकुर दीपक सिँह कवि
by Thakur Deepak Singh Kavi on Sunday, 20 March 2011 at 15:59
मै अपने हास्टल के सबसे ऊपर वाले फ्लोर पर खड़ा हूँ...देख रहा हूँ आपस के रंगोँ मेँ सबकोँ रंगते हुए...बच्चोँ की लम्बी टोली...युवाओँ...छात्रोँ के उमंगोँ को...कभी खुद के अंतरमन के आवेश मेँ बह रहा हूँ तो कभी उनके जोश को खुद मेँ महसूस कर रहा हूँ...मेरे दोस्तोँ ने मेरे गालोँ पर मानोँ रंगोली बना दी हैँ...माँ ने सुबह फोन करके कहा कि बेटा जरा कम खेलना नहीँ तो अगर तबियत खराब हो गयी तो परीक्षा मेँ दिक्कत हो जायेगी...पर क्या करे दिल है हिन्दुस्तानी...इसलिए ये दिल मांगे मोर... मेरे जैसे हिन्दुस्तान के अनेक छात्र होँगे जिनकी परीक्षायेँ या तो नजदीक आ चुकी है या फिर हो रही है...पर क्या वो होली नहीँ खेलेंगे!!!अगर ऐसा होता तो हम हिन्दुस्तानी नहीँ होते...यहीँ तो फर्क है हमारी और दूजी सभ्यताओँ मेँ...हम त्योहारोँ को दिल से मनाते है...प्यार से...त्योहार हमेँ सिखाते है जीना और प्यार भरना...
आज लोग एक दूजे को रंग मात्र नहीँ बल्कि प्यार के रंगोँ से सराबोर कर रहेँ...
होली ही एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसमेँ दुश्मन भी एक दूसरे को गले लगाते हैँ...इसे हम अपनी सभ्यता की महानता नहीँ कहेँगेँ तो फिर क्या कहेँगेँ!!! और हमेँ इस पर गर्व भी ना हो!!!ऐसा क्योँ भाई...
आएँ रंगोँ से खुद को रंगे...अपनोँ को जम कर रंग लगायेँ...दिल से जुड़े एवं दिल से दिल मिलायेँ...
दोस्तोँ के साथ,बड़े बुजुर्गोँ का आशीर्वाद पायेँ...
भारत की इस चिर एवं अमूल्य सभ्यता को यूँ ही जीवित रखेँ...
रंगोँ एवँ प्रेम के इस अनमोल त्योहार पर आप सभी को प्रेम एवं गुजियाँ जैसी मीठी बधाईयाँ...
-ठाकुर दीपक सिँह कवि
आज लोग एक दूजे को रंग मात्र नहीँ बल्कि प्यार के रंगोँ से सराबोर कर रहेँ...
होली ही एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसमेँ दुश्मन भी एक दूसरे को गले लगाते हैँ...इसे हम अपनी सभ्यता की महानता नहीँ कहेँगेँ तो फिर क्या कहेँगेँ!!! और हमेँ इस पर गर्व भी ना हो!!!ऐसा क्योँ भाई...
आएँ रंगोँ से खुद को रंगे...अपनोँ को जम कर रंग लगायेँ...दिल से जुड़े एवं दिल से दिल मिलायेँ...
दोस्तोँ के साथ,बड़े बुजुर्गोँ का आशीर्वाद पायेँ...
भारत की इस चिर एवं अमूल्य सभ्यता को यूँ ही जीवित रखेँ...
रंगोँ एवँ प्रेम के इस अनमोल त्योहार पर आप सभी को प्रेम एवं गुजियाँ जैसी मीठी बधाईयाँ...
-ठाकुर दीपक सिँह कवि
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