Sunday, March 27, 2011

Thakur Deepak Singh Kavi

जिन्दगी ही जिन्दगी को जीना सीखा देती है...
गम के आँसुओँ को इश्क का नगीना बना देती है...
और गम के दाग दिल पर गहरे हो जाये....
तो यह बेईमान हमेँ पीना सीखा देती हैँ...
हमेँ भुला दिया उन्होँने...
वो अब किसी और को क्या भुलायेँगी...
तो वादा है हमारा भी...
हमारी यादे उन्हे भी तनहाईयोँ मेँ रूलायेगी...
सुबह हो गयी!!!....जिस देश का प्रधानमंत्री इस बात से अनजान है कि देश मेँ क्या हो रहा है तो हम मासूमोँ को क्या खबर!!!
-ठाकुर दीपक सिँह कवि
सुबह हो गयी....खुद को सही सलामत देख कर खुशी भी हो रही है और आश्चर्य भी...यह मेरे साथ ही नहीँ बल्कि उन सबके लिए एक जीवनदान है जो मौजूदा हालात मेँ हिन्दुस्तान का अखण्ड हिस्सा है...भगवान भी नहीँ बता सकते कि कल की सुबह क्या होगीँ...ऐसे भ्रष्ट नेताओँ,सरकार एवं सामाजिक लोगोँ के बीच हम सुरक्षित रहे तो कैसे रहे..
 
‎"कितने नादान थे हम...
हमसे किसी को भुलाया नहीँ गया....
ज्यादती तो तब लगी...
जब खुद की मौत के जनाजे मेँ...
हमे बुलाया नहीँ गया..."
-ठाकुर दीपक सिँह कवि
 
 

Poem-NEITHER WRITER-THAKUR DEEPAK SINGH KAVI by Thakur Deepak Singh Kavi on Monday, 21 February 2011 at 00:28

POEM-NEITHER
everything started with a little bit
i started to conquer her heart
her shy expressions bounded me
i felt like going heart to heart
she give me way to
express myself
i gave her way express myself
neither she know me
nor i know her
but emmotions filled us
to patch up with each other
her blessing be her own
my blessings be for her zone
neither she cry
nor i be shy
but onething i tried for myself
that either i got her or gift myself....
-THAKUR DEEPAK SINGH KAVI

Poem-BROKEN HEART written by me-THAKUR DEEPAK SINGH KAVI by Thakur Deepak Singh Kavi on Tuesday, 22 February 2011 at 22:47

my hearts called me
he put the way for me
committed to go on
she never scold me
never hurdle the way for me
she never put a theme
for my songs
neither she tried for that
but my heart recall her
for that
that she never tried to know
that she never tried to feel
that she never tried to get
and never called her breath
to match with
my every single heart beats
i always tried to get her
my heart always tried
to know her
but she always tried
to rid off
neither i know why
never her heart allowed
i asked her
my heart demanded rply
her beats felt why
she got anyone
i have no one
she crowded her heart recalls
i adjusted in every falts
going for recall
waiting for a single room
in her open nd wide heart hall
because wishing to get her
hoping for her heart
i need her soul
she needs.....
Neither i know
nor my broken heart... -WRITTEN BY-THAKUR DEEPAK SINGH KAVI

" आएँ रंगोँ से खुद को रंग दें " लेखक - ठाकुर दीपक सिँह कवि

" आएँ रंगोँ से खुद को रंग दें " लेखक - ठाकुर दीपक सिँह कवि

by Thakur Deepak Singh Kavi on Sunday, 20 March 2011 at 15:59
मै अपने हास्टल के सबसे ऊपर वाले फ्लोर पर खड़ा हूँ...देख रहा हूँ आपस के रंगोँ मेँ सबकोँ रंगते हुए...बच्चोँ की लम्बी टोली...युवाओँ...छात्रोँ के उमंगोँ को...कभी खुद के अंतरमन के आवेश मेँ बह रहा हूँ तो कभी उनके जोश को खुद मेँ महसूस कर रहा हूँ...मेरे दोस्तोँ ने मेरे गालोँ पर मानोँ रंगोली बना दी हैँ...माँ ने सुबह फोन करके कहा कि बेटा जरा कम खेलना नहीँ तो अगर तबियत खराब हो गयी तो परीक्षा मेँ दिक्कत हो जायेगी...पर क्या करे दिल है हिन्दुस्तानी...इसलिए ये दिल मांगे मोर... मेरे जैसे हिन्दुस्तान के अनेक छात्र होँगे जिनकी परीक्षायेँ या तो नजदीक आ चुकी है या फिर हो रही है...पर क्या वो होली नहीँ खेलेंगे!!!अगर ऐसा होता तो हम हिन्दुस्तानी नहीँ होते...यहीँ तो फर्क है हमारी और दूजी सभ्यताओँ मेँ...हम त्योहारोँ को दिल से मनाते है...प्यार से...त्योहार हमेँ सिखाते है जीना और प्यार भरना...
आज लोग एक दूजे को रंग मात्र नहीँ बल्कि प्यार के रंगोँ से सराबोर कर रहेँ...
होली ही एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसमेँ दुश्मन भी एक दूसरे को गले लगाते हैँ...इसे हम अपनी सभ्यता की महानता नहीँ कहेँगेँ तो फिर क्या कहेँगेँ!!! और हमेँ इस पर गर्व भी ना हो!!!ऐसा क्योँ भाई...
आएँ रंगोँ से खुद को रंगे...अपनोँ को जम कर रंग लगायेँ...दिल से जुड़े एवं दिल से दिल मिलायेँ...
दोस्तोँ के साथ,बड़े बुजुर्गोँ का आशीर्वाद पायेँ...
भारत की इस चिर एवं अमूल्य सभ्यता को यूँ ही जीवित रखेँ...
रंगोँ एवँ प्रेम के इस अनमोल त्योहार पर आप सभी को प्रेम एवं गुजियाँ जैसी मीठी बधाईयाँ...
-ठाकुर दीपक सिँह कवि

" मकसद "- ठाकुर दीपक सिँह कवि

दुनिया मेँ कुछ जीत सकते हो तो किसी का दिल जीतो...किसी का विश्वास जीतो....प्रेम से सुखद अनुभव इस दुनिया मेँ कुछ नहीँ है....
धर्म विशेष से घ्रिणा करने के बजाय बुरे कर्म करने वाले इँसा को सद्बुद्दि दो...
उसे सही रास्ते पर लाने की कोशिश करेँ...यही हमारा वास्तविक धर्म है...
मुझे हिन्दू होने का अपार गर्व है परन्तु किसी के मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई होने से कोई आपत्ति भी नहीँ है....
ईश्वर ने हमेँ धरती पर जन्म दिया है तो उस सर्वशक्ति मान का एक मात्र उद्देश्य प्रेम का प्रसार करना है...
उसने हमेँ इंसान बनाया है तो उसका एकमात्र उद्देश्य एकता बनाये रखना हैँ...जानवर बनना नहीँ...
अगर हम एक दूजे से द्वेष एवं क्लेश की भावना से ग्रष्त रहेँगे तो भला इस दुनिया मेँ हमेँ मानव कहलाने का क्या अधिकार है?
जीवन को जीने का हमेँ ज़रिया बनना चाहिए...ना कि बोझ...
वर्तमान मे जीने का एकमात्र मकसद प्रेम की अनुभुति एवं प्रेम का अनुशरण होना चाहिए...
धार्मिक क्लेश फैलाने वालोँ का भी एक विशेष मकसद हैँ...उन्हेँ सत्ता,सुख,एवं शक्ति की भूख हैँ....
वो आते है हमेँ भड़काते है लड़ाते है और खुद किनारा कर लेते हैँ....
और उनसे बड़े मूर्ख तो हम है जो बिना किसी बुनियाद के एक दूजे से लड़ते रहते हैँ...
अपने जीवन का मकसद समझो दोस्तोँ!!!प्यार दो और प्यार लो....अपनी ज़िन्दगी अपने ढ़ंग से जियो....ना कि किसी के बताये हुए तरीके से....
अपने जीवन के मकसद को पहचानोँ और आओँ मिलकर एक शिक्षित,सुखी,स्वस्थ्य,सम्पन्न,प्रेमपूर्ण समाज एक सम्राट एवँ गौरवशील हिन्दुस्तान का निर्माण करेँ.........

Monday, February 28, 2011

"भारतीय समाज मेँ नारी एवं उनकी सुरक्षा" लेखक - ठाकुर दीपक सिँह कवि

इस पुरूष प्रधान समाज मेँ हम पुरूषवर्ग आदिकाल से नारियोँ के उत्सर्ग मेँ बाधा उत्पन्न करते आये है... हम हमेशा खुद मेँ खुबियाँ ढुढते रहते है... समाज मेँ खुद को साबित करने के लिए अपने बल का प्रयोग करते है... नारियोँ के उत्थान मेँ जाने क्योँ हमेँ खुद का पतन नजर आता है !!! किसी नारी को आगे बढते हुए जाने क्योँ हम नहीँ देख सकते, खासकर खुद से.... आश्चर्य तो तब होता है जब अपनी संर्कीर्ण मांसिकता का दोषी एक नारी को ठहराते है.... गलतिया हम करते है और कारण एक नारी को बताते है....वो पुरानी कहावत "जूती और स्त्री पैरोँ के नीचे ही रहे तो ठीक है", मुझे पता नहीँ किसने लिखी है परन्तु इतना जरूर पता है कि जिसने भी लिखा या कहा है वास्तव मेँ एक नारी एवं उसकी भावनाओँ को आजतक समझ ही नहीँ पाया.... 'नारी' शब्द ही संस्कार एवं सम्मान का हकदार है.... वेदना एवं संवेदना एक नारी ही इंसान को सिखाती है... फिर भी हम भावना की इस मुर्ति को गलत ठहराते है और जाने क्योँ यह भूल जाते है कि हमेँ इस दुनिया मेँ जन्म एक नारी ने ही दिया है... एक माँ का कर्ज और एक भाई का फर्ज आखिर हम पूरा नहीँ करेगे तो कौन करेगा?जब भी समाज मेँ नारियोँ की सुरक्षा की बात होती है तो हमेँ सिर्फ कालेज की मिनी स्कर्ट और भारतीय समाज की उच्चवर्गीय महिलायेँ नजर आती है...जाने कैसे हम यह भूल जाते है कि भारत मेँ साठ प्रतिशत जनसंख्या गाँवोँ मेँ जीवन-यापन करती है.... उन स्त्रियोँ के बारेँ मेँ उन लोगोँ का क्या ख्याल है जो इस ग्रामीण समाज का अभिन्न हिस्सा है.... क्या वह भूल जाते है कि उन्होनेँ या उनके पूर्वजोँ ने कहीँ न कहीँ उसी स्त्रीँ की कोख से जन्म लिया है या फिर ऐसी स्त्रियोँ के लिए उनके हिसाब से कोई अस्तित्व ही नहीँ है.... तो वे लोग ऐसा संकीर्ण ख्याल अपने दिलोँ-दिमाग से निकाल दे तो ही बेहतर होगा.... यह बात भी सही है कि प्रेम के साथ-साथ धोखा देना भी एक स्त्री ही सिखाती है.... लेकिन हिन्दुस्तान मेँ बुराईयाँ किसमेँ नहीँ है ? हम मेँ... आप मेँ... सब मेँ है.. क्योँकि एक हाथ तो ताली बजती नहीँ... परन्तु गुनाह करने के लिए किसी दूजे हाथ का जरूरत भी नहीँ होता... बुराईयाँ अगर हम पुरूषोँ मेँ है तो कहीँ न कहीँ नारियोँ मेँ भी हैँ... आज हमारे सामने कई ऐसे मुद्दे उभरकर आते है जिसमे एक महिला घोर अपराध को अंजाम देती है....कई महिलाऐ समाज मेँ मानसिक एवं परिवेश मे द्वेष भी फैलाती है परन्तु यह कहाँ का कानून है कि एक की गलती की सजा हम सौ या हजार को दे!!! भारतीय कानून के हिसाब से एक दोषी को सजा मिले या ना मिले परन्तु एक निर्दोष को सजा किसी भी कीमत पर नही होनी चाहिए....अगर कानून हमारे हिसाब से होता तो कसाब सरीखे कई हैवान अबतक उपर की सैर कर रहे होते.... उनके ऊपर अगर मुकदमा चल रहा है तो यह पता करने के लिए कि कहीँ वो निर्दोष तो नहीँ.....
फिर तो भारतीय कानून के हिसाब से हम सब अपराधी है....
अतः हमे एक दूजे पर कीचङ उछालने के बजाय खुद मेँ सुधार करने की कोशिश करनी चाहिए... भारतीय समाज मेँ नारी उत्थान और सुरक्षा का दायित्व नारी , पुलिसबल और सरकार से ज्यादा हम पुरूषोँ का हैँ...
भारत मेँ ऐसी संस्थायेँ भी बहुत है जो ईस उद्देश्य हेतु कार्यरत है परन्तु इतने बङे नारी समुदाय का विकास एवं सुरक्षा कोई संस्था या अकेली सरकार नही कर सकती बल्कि हमारा सहयोगा वाँछनीय हैँ...
रोज रोज के किस्सोँ पत्र पत्रिकाओँ मे पढ पढ कर लगता है हम अभी तक उबे नहीँ है...
रोज समाचार का शीर्ष वही हत्या , बलत्कार लूट , छेङछाङ... आखिर कब तक हम यह देखते सुनते और पढते रहेगे?....
कबतक हम खुद पर शर्म करते रहेँगेँ???
वक्त आ गया है... खुद जागने का और सबकोँ सचेत करने का...
किससे डरते होँ !!! सरकार , पुलिस... भूलोँ मत कि ये हमारेँ ही बनायेँ गयेँ वो खोखले स्तम्भ है जिसे हम जब चाहेँ गिरा सकते है... एक बार कोशिश तो करके देखोँ...
फिर वैसे ही सरकार घुटने टेकेगी जैसे आरूषि जेसिकालाल के केस मेँ हुआ...
मुझे ज्यादा इँगित करने की जरूरत नहीँ है आप खुद ही समझदार हो...
अतः जागोँ पुरूषोँ जागोँ... नारी की सुरक्षा ही हमारा सम्मान है...
आओँ वादा करेँ कि किसी को दोषी बनाने एवँ किसी दूजे को सचेत करने से पहले खुद मे सुधार करे...

-ठाकुर दीपक सिँह कवि

Monday, February 14, 2011

................

11dec2010-poem-"wo"

by Thakur Deepak Singh Kavi on Saturday, 11 December 2010 at 04:24
POEM BY ME-THAKUR DEEPAK SINGH"KAVI"
..........€ "WO" €..........
Aaj na sahi kal to laut aiegi wo...
Saath chalte-chalte kbhi to muskuraigi wo...
Unki ankho k kajal se ishq ki kahani likh daali...
Kabhi to vo din aega jab isko padh payenge wo...
Sochte hai roz ki kah denge dil ki baat...
Par darr lagta hai ki itni jaldi kya samajh payenge wo...
Aj bhi unki yaad me labb sihar uthte hai...
Par aj bhi sochte hai ki kya is dil ki pyaas bujhayenge wo...
Raate yu hi guzar jaati hai...
Jaane kab aisi raat hogi...
Jis raat neendo me na ayenge wo...
Tasveer har waqt gawahi deti hai...
Jaane kis din apne dil me hamari tasveer lagayenge wo...
Jaane kis din apne dil me hamari tasveer lagayenge wo...
THAKUR DEEPAK SINGH"KAVI"
09026878847

Ek aahwaan...for aarushi murder case

मारने और जिन्दा रखने का हक
किसने उन जालिमो को दिया है
जिनने मानवता से परे रहकर
ऐसा दुष्कर्म किया है
आओ हम सब मिलकर न्याय की गुहार लगायेँगेँ
उन ममता के सूखेँ आसुओँ को
इन्साफ जरूर दिलायेँगेँ
कुछ वक्त अपना उन्हे भी दे दो
जिनको हम जैसेँ भाईयोँ और बहनोँ का
साथ चाहियेँ
हमनेँ कदम बढाया है
बस इन हाथोँ मेँ आपका हाथ चाहियेँ
-ठाकुर दीपक सिँह कवि

Poem-what i have done TRANSLATED FROM-"MAINE KYA KIYA" WRITTEN BY-THAKUR DEEPAK SINGH KAVI TRANSLATED BY-THAKUR DEEPAK SINGH ... by Thakur Deepak Singh Kavi on Friday, 11 February 2011 at 15:56

This poem is under consideration of oxford poetry p
ress uk....
Mailed to oxford by me...


"Everytime i tried to kill my love and emmosions/feelings
Everytime i tried to feel you,accept you
For shake and coolness of my heart
i have done....what i do'nt know
everytime i tried to stole dreams
everytime i prommise with you
i have taken breathe with full of rest
and without any reason
i burried my breathe

on the cornes of eyes
i made wonder with myself
that what i have done
that what i have done
in the shade of every news
i made hot same as
underground earth
on burning heart
i dropped some drops of cold water
the broken roses from my wishes
i rubbed them myself
yet i am asking to myself
what i have done
what i have done

moonlight always tried to save days
and without informing anyone
i have stolen the moon
and i am asking to myself
what i have done
but i have a question
till in my heart
that i have plenty of time
but why
why
i made tears for myself
and now i understand
what i have done
what i have done"
-THAKUR DEEPAK SINGH KAVI

..................

Poem-valentine day written by-THAKUR DEEPAK SINGH KAVI

by Thakur Deepak Singh Kavi on Monday, 14 February 2011 at 00:17
Humko yad kiya unhone ya bhula diya
Abhi tak yaado me hai unke yah hume bta diya
February ke mhine me bhagwan ne mauka diya
Bas humne bhi unhe pane ka rutba chadha liya
Seven ko unko hi phul dena tha
Kyoki hume unhe phul se hi pyar dena tha
Agle din ektafaq se
Karna hume izhar tha
Nine ko kuch meetha khilakar
Apne riste me bharna pyar tha
Par unhone yah samajh liya ki
Humara izhar,pyar sab bakwas tha
Agle din uparwale ne
Phir hume mauka diya
Us din teddy day tha
Yah dosto ne bta diya
Raat bhar jagte rhe hum
Bas unki yaad ka intazar tha
Kya kre majboor the hum
Kyoki hume unse pyar tha
Kosis ki humne bhut
Unko mnane ki
Promise day ke din
Wado me badh jane ki
Par unhe aj bhi humse
Jane kyu na pyar tha
Rat bhar jagte rhe
Unki baat ka intzar tha
Agli subah ayi
Aur hume yah btaya gya
Ki kambakht jaldi uth
Kiss day hai a gya
Din bhar unki ek jhalk ka
Hume besabri se intzar tha..........
Par wo na dikhi hume
Yah bhi nhi btaya ki
kya unhe humse pyar hai?
Aaj valentine day hai
Bas apke 'ha' ka intzar hai
Bas apke ek 'ha' ka intzar hai
Ek baar dil se kah do
Ki tumhe bhi humse pyar hai....
Ki tumhe bhi humse pyar hai...

BY-THAKUR DEEPAK SINGH KAVI
Happy valentine Day

कविता-"आशियाना" > -ठाकुर दीपक सिँह 'कवि' >

> एक पल का खुशनुमा
> आशियाना है
> फिर पता नहीँ हम कहाँ
> और
> हमेँ कहाँ जाना है
> बस इश्क मेँ डूबे रहे
> यूँ ही
> नजरेँ बिछायेँ
> हम मुसाफिर ही सही
> कोई अजनबी तो आये
> फिर कसम है आशिकी की
> उसे
> प्यार का मतलब बता
> देँगे
> गर यह ना कर सके हम तो
> उसे इश्क करना सिखा
> देगेँ
> वाकिफ है हम उनके
> इरादोँ से
> घबराये रहते है उनके
> वादोँ से
> उन्होने शतरंज का हमे
> घोङा बनाया है
> तो हम भी जीत लेगे
> यह इश्क का खेल
> अपने दिल के हाथोँ से
> इरादा उनका क्या है
> यह हम नही जानते
> उन्हे हमसे चाहिए क्या
> यह भी नही जानते
> पर कोई यह कहे कि
> उन्हे हमसे इश्क नहीँ
> है
> यह हम नहीँ मानते
> यह हम नहीँ मानते
> ठुकराकर ही सही
> हमे अपना तो बना लीजिए
> इश्क है या कुछ और
> साफ साफ बता दीजिए
> सवाल होगा आपके पास
> कि यह पूछ कर हम क्या
> करेँगे
> जवाब भी होगा कि
> किसी दूसरे की तरफ घर कर
> लेगेँ
> पर आपका अंदाजा हमेशा
> गलत ही जाता है
> आपका दिल हमारे
> जसबातोँ को समझ नहीँ
> पाता है
> आपके ठुकराने से हम भाग
> नहीँ जायेगे
> बल्कि जब तक आप मानोँ
> नहीँ
> आपसे ही इश्क निभायेगे
> आपको चुनना हमारा
> ख्याल नहीँ था पहलेँ
> पर दिल के कानून ने
> सिखा दिया है हमको
> "नफरत करने वालोँ से ही
 इश्क करते जाओ यारो
 कुछ कर नहीँ सके इस
 दुनिया मेँ
 तो नफरत ही मिटाओ यारो
 प्यार महफूज कहाँ है
 जनाजे तक जाने मे
 सच तो यहीँ है दुनिया
 का
 कि जीत है मर जाने मेँ
 आखिर गिर कर ही सहीँ
 मंजिल हमेँ मिल जायेगी
 वरना खङे रहने मेँ क्या
 शौक
 जिन्दगी खाली खाली रह
 जायेगी
 कह रहा दीपक
 यारोँ दुनिया से अब
 क्या घबराना है
 मौत ही मिले ईनाम तो
 सही
 पर इश्क करते जाना है
 वक्त की रफ्तार से
 कुछ तो रिश्ता पुराना
 है
 वरना उपरवाला भी क्योँ
 बार बार सोचता
"चलोँ आशिक के प्यार को
अब आजमाना है"

 आशा है यह कविता आपको
 जरूर पसंद आयी
 होगी...
 आपके प्रतिक्रिया की
 प्रतिक्षा मेँ
 आप सबका प्रिय युवा कवि
 ठाकुर दीपक सिँह कवि0

Thursday, February 10, 2011

शायरी-ठाकुर दीपक सिँह कवि

1.रौशन है जिन्दगी फिर भी तन्हाई नजर आती है
चमकते हुए चाँद मेँ भी परछाई नजर आती है

2.सपने सजानेँ भर से ही
मंजिल नहीँ मिल पाती
हम उन्हेँ जोङते है
चाहे जितनी मुश्किलेँ आती
खामोश रहकर भी हम
कितना कुछ कहते है
क्या तुम
कभी पढ पाये
सपनेँ तो हमने तुम्हारे सजा दिये
पर तुमने मेरे सपने कभी सँजाये?
-ठाकुर दीपक सिँह कवि