Monday, February 14, 2011

Ek aahwaan...for aarushi murder case

मारने और जिन्दा रखने का हक
किसने उन जालिमो को दिया है
जिनने मानवता से परे रहकर
ऐसा दुष्कर्म किया है
आओ हम सब मिलकर न्याय की गुहार लगायेँगेँ
उन ममता के सूखेँ आसुओँ को
इन्साफ जरूर दिलायेँगेँ
कुछ वक्त अपना उन्हे भी दे दो
जिनको हम जैसेँ भाईयोँ और बहनोँ का
साथ चाहियेँ
हमनेँ कदम बढाया है
बस इन हाथोँ मेँ आपका हाथ चाहियेँ
-ठाकुर दीपक सिँह कवि

Poem-what i have done TRANSLATED FROM-"MAINE KYA KIYA" WRITTEN BY-THAKUR DEEPAK SINGH KAVI TRANSLATED BY-THAKUR DEEPAK SINGH ... by Thakur Deepak Singh Kavi on Friday, 11 February 2011 at 15:56

This poem is under consideration of oxford poetry p
ress uk....
Mailed to oxford by me...


"Everytime i tried to kill my love and emmosions/feelings
Everytime i tried to feel you,accept you
For shake and coolness of my heart
i have done....what i do'nt know
everytime i tried to stole dreams
everytime i prommise with you
i have taken breathe with full of rest
and without any reason
i burried my breathe

on the cornes of eyes
i made wonder with myself
that what i have done
that what i have done
in the shade of every news
i made hot same as
underground earth
on burning heart
i dropped some drops of cold water
the broken roses from my wishes
i rubbed them myself
yet i am asking to myself
what i have done
what i have done

moonlight always tried to save days
and without informing anyone
i have stolen the moon
and i am asking to myself
what i have done
but i have a question
till in my heart
that i have plenty of time
but why
why
i made tears for myself
and now i understand
what i have done
what i have done"
-THAKUR DEEPAK SINGH KAVI

..................

Poem-valentine day written by-THAKUR DEEPAK SINGH KAVI

by Thakur Deepak Singh Kavi on Monday, 14 February 2011 at 00:17
Humko yad kiya unhone ya bhula diya
Abhi tak yaado me hai unke yah hume bta diya
February ke mhine me bhagwan ne mauka diya
Bas humne bhi unhe pane ka rutba chadha liya
Seven ko unko hi phul dena tha
Kyoki hume unhe phul se hi pyar dena tha
Agle din ektafaq se
Karna hume izhar tha
Nine ko kuch meetha khilakar
Apne riste me bharna pyar tha
Par unhone yah samajh liya ki
Humara izhar,pyar sab bakwas tha
Agle din uparwale ne
Phir hume mauka diya
Us din teddy day tha
Yah dosto ne bta diya
Raat bhar jagte rhe hum
Bas unki yaad ka intazar tha
Kya kre majboor the hum
Kyoki hume unse pyar tha
Kosis ki humne bhut
Unko mnane ki
Promise day ke din
Wado me badh jane ki
Par unhe aj bhi humse
Jane kyu na pyar tha
Rat bhar jagte rhe
Unki baat ka intzar tha
Agli subah ayi
Aur hume yah btaya gya
Ki kambakht jaldi uth
Kiss day hai a gya
Din bhar unki ek jhalk ka
Hume besabri se intzar tha..........
Par wo na dikhi hume
Yah bhi nhi btaya ki
kya unhe humse pyar hai?
Aaj valentine day hai
Bas apke 'ha' ka intzar hai
Bas apke ek 'ha' ka intzar hai
Ek baar dil se kah do
Ki tumhe bhi humse pyar hai....
Ki tumhe bhi humse pyar hai...

BY-THAKUR DEEPAK SINGH KAVI
Happy valentine Day

कविता-"आशियाना" > -ठाकुर दीपक सिँह 'कवि' >

> एक पल का खुशनुमा
> आशियाना है
> फिर पता नहीँ हम कहाँ
> और
> हमेँ कहाँ जाना है
> बस इश्क मेँ डूबे रहे
> यूँ ही
> नजरेँ बिछायेँ
> हम मुसाफिर ही सही
> कोई अजनबी तो आये
> फिर कसम है आशिकी की
> उसे
> प्यार का मतलब बता
> देँगे
> गर यह ना कर सके हम तो
> उसे इश्क करना सिखा
> देगेँ
> वाकिफ है हम उनके
> इरादोँ से
> घबराये रहते है उनके
> वादोँ से
> उन्होने शतरंज का हमे
> घोङा बनाया है
> तो हम भी जीत लेगे
> यह इश्क का खेल
> अपने दिल के हाथोँ से
> इरादा उनका क्या है
> यह हम नही जानते
> उन्हे हमसे चाहिए क्या
> यह भी नही जानते
> पर कोई यह कहे कि
> उन्हे हमसे इश्क नहीँ
> है
> यह हम नहीँ मानते
> यह हम नहीँ मानते
> ठुकराकर ही सही
> हमे अपना तो बना लीजिए
> इश्क है या कुछ और
> साफ साफ बता दीजिए
> सवाल होगा आपके पास
> कि यह पूछ कर हम क्या
> करेँगे
> जवाब भी होगा कि
> किसी दूसरे की तरफ घर कर
> लेगेँ
> पर आपका अंदाजा हमेशा
> गलत ही जाता है
> आपका दिल हमारे
> जसबातोँ को समझ नहीँ
> पाता है
> आपके ठुकराने से हम भाग
> नहीँ जायेगे
> बल्कि जब तक आप मानोँ
> नहीँ
> आपसे ही इश्क निभायेगे
> आपको चुनना हमारा
> ख्याल नहीँ था पहलेँ
> पर दिल के कानून ने
> सिखा दिया है हमको
> "नफरत करने वालोँ से ही
 इश्क करते जाओ यारो
 कुछ कर नहीँ सके इस
 दुनिया मेँ
 तो नफरत ही मिटाओ यारो
 प्यार महफूज कहाँ है
 जनाजे तक जाने मे
 सच तो यहीँ है दुनिया
 का
 कि जीत है मर जाने मेँ
 आखिर गिर कर ही सहीँ
 मंजिल हमेँ मिल जायेगी
 वरना खङे रहने मेँ क्या
 शौक
 जिन्दगी खाली खाली रह
 जायेगी
 कह रहा दीपक
 यारोँ दुनिया से अब
 क्या घबराना है
 मौत ही मिले ईनाम तो
 सही
 पर इश्क करते जाना है
 वक्त की रफ्तार से
 कुछ तो रिश्ता पुराना
 है
 वरना उपरवाला भी क्योँ
 बार बार सोचता
"चलोँ आशिक के प्यार को
अब आजमाना है"

 आशा है यह कविता आपको
 जरूर पसंद आयी
 होगी...
 आपके प्रतिक्रिया की
 प्रतिक्षा मेँ
 आप सबका प्रिय युवा कवि
 ठाकुर दीपक सिँह कवि0

Thursday, February 10, 2011

शायरी-ठाकुर दीपक सिँह कवि

1.रौशन है जिन्दगी फिर भी तन्हाई नजर आती है
चमकते हुए चाँद मेँ भी परछाई नजर आती है

2.सपने सजानेँ भर से ही
मंजिल नहीँ मिल पाती
हम उन्हेँ जोङते है
चाहे जितनी मुश्किलेँ आती
खामोश रहकर भी हम
कितना कुछ कहते है
क्या तुम
कभी पढ पाये
सपनेँ तो हमने तुम्हारे सजा दिये
पर तुमने मेरे सपने कभी सँजाये?
-ठाकुर दीपक सिँह कवि

Tuesday, December 21, 2010

"गजल"-ठाकुर दीपक सिँह कवि

कभी किसी की खामोशी चुराते है
कभी खुद को छुपाते है
मायुस है हर खुशी
और हम दिल को बहलाने के लिए
जाने क्या क्या कर जाते है
नीँदे चुराते है,सपने सँजाते है
वादे निभाते है,खुद ही भुल जाते है
वक्त की यह दास्ता
हम खुद को सुनाते है
क्योँ हर घङी हम खुद को
हजारोँ के बीच भी तनहा पाते है
सच्चाई को छुपाने की कोशिशे की जाती है
जो अपना नहीँ,अपना बनाने की कोशिशे की जाती है
सहम उठते है,सिसक उठती है धङकने
और हमारे सपने,ख्वाहिशे ही रह जाती है
बीते हुए लमहोँ ने हमेँ
जाने क्या क्या सिखा दिया
दूर थे जिससे आजतक हम
उन्हे ही आज
हमने अपना बना लिया
ठाकुर दीपक सिँह 'कवि'

Monday, December 20, 2010

विचार एवं कल्पनायेँ-ठाकुर दीपक सिँह 'कवि'

विचारोँ के तुफान मे यूँ ही
सिहर उठती हैँ कल्पनायेँ
कुछ दबी दबी बात है
कुछ अनसुनी सौगात है
खुद से पूछ लू मैँ
यह विचार सहज है
परन्तु सरल नहीँ
विचार से आशायेँ जुङी हैँ
और आशाओँ से कल्पनायेँ
परन्तु एक होकर भी ये
भिन्न है अलग है
विचार एवँ कल्पनायेँ
यह विषय कुछ उलझाता है
कुछ समझ मेँ आता है
और कुछ खुद मेँ ही सिमट जाता है विचार मानव का मनोविग्यान!
या विचार मानव ह्रदय की सन्तान
यह सवाल मेरे जेहन मेँ
यूँ ही चला आता है
आसान भी लगता है
परन्तु कल्पना से
कुछ दूर रह जाता है
हमारे विचार कल्पना से सम्बद्ध
हो सकते है
परन्तु कल्पना से विचार
परिवर्तनहीन है
क्योँकि कोई कल्पना वास्तव मेँ
एक विचार हो
सम्भव नहीँ है
असम्भव भी नहीँ है
हम कुछ करना चाहते है
-यह कल्पना है
हमेँ कुछ करना चाहिए
-यह विचार है
कल्पना एवं विचार
दोनोँ एक सिक्के के दो पहलू है
जिसे तिरछा देखा जाय तो एक है
परन्तु सीधा देखा जाय तो बस एक है
-कल्पना या विचार
यह प्रश्न मेरे ह्रदय को
ज्वलंत कर देता है
अतः यह प्रश्न
मैँ पाठकोँ के लिए छोङता हूँ
विचार जारी है
यह मेरी कल्पना हैँ
(ठाकुर दीपक सिँह 'कवि')
पूर्व छात्र
चिल्डेन सीनियर सेकेण्डरी स्कूल,आजमगढ,उ0प्र0